जीव में निर्जीव सी निस्तब्धता है ,
क्या हुआ जो वायु में अस्वस्थता है ?
हर तूफानी लहर पर घर बाँधने की ,
क्या हुआ जो वायु में अस्वस्थता है ?
हर तूफानी लहर पर घर बाँधने की ,
जलजलों पर एक नौका डालने की ,
समय सी जो हाथ पर से हो फिसलती ,
रेत पर उस एक पौधा पालने की,
एक ज़िद को साधने में व्यस्तता है.
घोर तम को चन्द्रमा भी ओढ़ सोया
देख कर रवि का विहाग भी खूब रोया
देख कर रवि का विहाग भी खूब रोया
पर बिलखती हुयी आशा में भी उसने
रवि की किसी किरण का ही बीज बोया
प्रलय में निर्माण की ही पुष्टता है
रवि की किसी किरण का ही बीज बोया
प्रलय में निर्माण की ही पुष्टता है
पर्वतों की फ़तेह को सब मान लेना
कुछ फ़र्लांगो को ही जीवन जन लेना ,
कुछ फ़र्लांगो को ही जीवन जन लेना ,
बैठ जाना याद कर बातें पुरानी,
और उस पर धनुष -भृकुटी तान लेना
चिर बुलाते ख्सितिज की दुर्लक्ष्ता है
चिर बुलाते ख्सितिज की दुर्लक्ष्ता है
सुन्दर कविता हिमानी जी बधाई और शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteBahut bahut dhanyawad :)
Deleteआशीष और शुभकामनाएं
ReplyDeleteBahut bahut dhanyawad :)
Deletemujhe sach me tum nazar ati ho in kavitaaon me..!!
ReplyDeletebahot sundar..!!
bahut bahut shukriya shiksha itne atmiya comment ke lie.. :)
Delete"प्रलय में निर्माण की ही पुष्टता है"....kitna sahaj aur kitna sundar....dhero aashish aur badhaiyan...
ReplyDeletedhanyawad.. :)
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